नेपाल के “Gen Z” आंदोलन की चिंगारी सोशल मीडिया प्रतिबंध से सुलगी
नेपाल के “Gen Z” आंदोलन की चिंगारी सोशल मीडिया प्रतिबंध से सुलगी, जब सरकार ने 26
प्लेटफॉर्म्स को पंजीकरण की शर्तों पर पूरा न होने के कारण बंद करने की घोषणा की।
प्रमुख नेता व पहलकर्ता
* **के.पी. शर्मा ओली** (KP Sharma Oli) — तत्कालीन प्रधानमंत्री, जिन्होंने यह प्रतिबंध लागू करवाया। ([myRepublica][2])
* **प्रिथ्वी सुब्बा गुरुङ** (Prithvi Subba Gurung) — सूचना और प्रसारण मंत्री, जिन्होंने पंजीकरण और अनुपालन की मांग की। ([The Times of India][3])
* **रमेश लेखक** (Ramesh Lekhak) — गृह मंत्री, जिन्होंने “नैतिक ज़िम्मेदारी” का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया। ([The Times of India][3])
* **बालेंद्र शाह** (Balendra Shah), जिन्हें “Balen” कहा जा रहा है — काठमांडू के मेयर, युवा नेतृत्व की उम्मीदों में शामिल। ([The Indian Express][4])
* **रवि लामिछाने** (Rabi Lamichhane) — राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी के प्रमुख, पूर्व टीवी एंकर; उनके डिजिटल प्रभाव की चर्चा हुई। ([The Indian Express][4])
* **सुधन गुरुङ** (Sudhan Gurung) — NGO “Hami Nepal” के अध्यक्ष; युवाओं के संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। 
### सामाजिक आलोचना और युवा आवाज़ें
* कई **छात्र** और **युवा सक्रियकर्ता** जैसे **युजन राजभण्डारी** (Yujan Rajbhandari), **इक्षामा तुम्रोक** (Ikshama Tumrok) जैसी आवाज़ों ने पारदर्शिता, भ्रष्टाचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी की मांग उठाई। ([mint][5])
* साथ ही “नेपो बेबी / नेपो किड” जैसे ऑनलाइन ट्रेंड्स में शीर्ष राजनीतिक परिवारों के बच्चों की जीवनशैली पर सवाल उठाए गए — जैसे कि जयवीर (Jaiveer), सिवाना (Sivana), श्रिनखला खतीवडा (Shrinkhala Khatiwada), आदि। ([myRepublica][2])
### परिणाम संक्षिप्त
सम्पूर्ण दबाव के बाद सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस लिया। ([India Today][1]) प्रधानमंत्री ओली इस्तीफा देने को विवश हुए। ([Connecticut Public][6]) आंदोलन ने जनता के अंदर यह संदेश भेजा कि युवा वर्ग अब राजनीतिक पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर पीछे नहीं हटेंगे।
1. प्रस्तावना
नेपाल हाल के दिनों में एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बना। सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पाबंदी लगाने की घोषणा की, जिससे युवाओं और आम नागरिकों में गहरा असंतोष फैल गया।
2. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध
सरकार का तर्क था कि यह कदम फेक अकाउंट, अफवाह और साइबर अपराध रोकने के लिए है। लेकिन जनता ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना।
3. युवाओं का विरोध
"नेपो किड" ट्रेंड ने आग में घी का काम किया। इसमें नेताओं के बच्चों की ऐशो-आराम भरी ज़िंदगी और आम लोगों की कठिनाइयों का अंतर उजागर हुआ। युवा सड़कों पर उतर आए और नारे लगाने लगे – *“भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं।”*
4. हिंसा और हताहत
प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस, पानी की बौछार और गोलियों का प्रयोग किया। इसमें कम से कम 19 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए।
5. अंतरराष्ट्रीय दबाव
मानवाधिकार संगठनों और विदेशी शक्तियों ने इस प्रतिबंध की आलोचना की। इसे लोकतंत्र और प्रेस स्वतंत्रता पर खतरा बताया गया।
6. परिणाम
जनता के दबाव और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद सरकार को सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध हटाना पड़ा। इस संघर्ष ने स्पष्ट कर दिया कि नेपाल की नई पीढ़ी अपने अधिकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

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