"पहाड़' की व्यथा "
प्रथम प्रणाम उस धरती पुत्र भगीरथ को जो उस धरती पर माँ गंगा को लाया|
सुरेन्द्र
दूसरा प्रणाम उस कविलाषी (शिव) को जो गंगा को जटा में समाया |
खैर बात अपने जन्म भूमि की करते है "पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती "
हम किस जवानी और किस पानी की बात करते है जिसे हम सिर्फ याद करते है,
हम किस जवानी और किस पानी की बात करते है जिसे हम सिर्फ याद करते है,
पलायन की पीड़ा में जलता पहाड़ शहरो में ऐसे बस गया है जैसे की उससे हमारा कोई नाता ही ना हो |
खैर दोष देना छोड़ते है मुद्दे की बात का मज़ा लेते है मसलन पहाड़ की राजनितिक गतिविद्धियाँ 17 वर्षो में 9 मुख्यमंत्रियों की लिस्ट (2 :1 )
जवाब देहि पलायन के प्रति हमारी थी आज तक अपने अधिकारों के लिए कितने अनशन कितनी रैलियाँ की हमने? हम लोग अलग होकर भी दलगत राजनीती में फस कर रह गए|
समय ये हो चूका है कि आज भी 10 साल का बच्चा किताबों का बोझ लेकर 5 K.M पैदल चलता है|
किस जवानी की बात करते है हम? जो आयी ही नहीं !
ये लिख कर क्या हम कर लेंगे पता नहीं, लेकिन भूल न पाएंगे वो दिन कभी जब पूरा खेत मैदान अपना आँगन चौक लगता था|
10/10 के बंद कमरों में रहने वालो वो सूरज आज भी चमकता होगा कभी तेज़ धूप के लिए उसे रोज कोसता रहता था
आज 70 रूपये किलो झंगोरा और 160 रुपये किलो भांग दिल्ली में उपलब्ध है तो "क्या जरुरत है वहां हल चलने की" बात भी सही है
चलो कभी सैलानी ही बनकर जाना पर देख आना अपने बिराने घरो को देवतों के थानों को उजड़े भीड़ों को पन्दरे के पानी को और एक रोट भी कटी आन अपने भूम्यालु भूमि भैरों के नाम का |
घर बौन रक्षा करेगा| पलायन पर आजकल सभी लिखते रहते है
कुछ चुनिंदा मार्मिक तस्वीरें याद में अपने पहाड़ की आशा है कटाक्ष पर सुझाव जरूरदेंगे |
@सुरेन्द्र कुमार
कुछ चुनिंदा मार्मिक तस्वीरें याद में अपने पहाड़ की आशा है कटाक्ष पर सुझाव जरूरदेंगे |
@सुरेन्द्र कुमार
फोटो स्रोत- सुरेन्द्र , आनंद कुमार ,हरीश
धन्यवाद
like share and most imp. comment.
@pahadi mitra
NICE JOB
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